भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ समय से रेसिप्रोकल टैरिफ को लेकर तनातनी बनी हुई है। क्या इस मामले में कोई समझौता हो पाएगा? क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अप्रैल से भारत से रेसिप्रोकल टैरिफ वसूल पाएंगे? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों पर इसका सीधा असर पड़ने वाला है।
भारत सरकार इस टैरिफ विवाद को सुलझाने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। भारतीय अधिकारियों ने तो यहाँ तक प्रस्ताव दिया है कि वे अमेरिका के 50% सामान पर संभावित नुकसान उठाने को तैयार हैं। लेकिन, ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति ट्रंप किसी खास मांग पर अड़े हुए हैं, जिससे भारत सरकार के सामने एक मुश्किल स्थिति खड़ी हो गई है।
इससे पहले, अमेरिकी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव्स और नई दिल्ली में भारतीय अधिकारियों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है। इन बैठकों का मुख्य मुद्दा रेसिप्रोकल टैरिफ ही रहा। भारत ने अमेरिका को यह पेशकश की थी कि वह उनके 23 बिलियन डॉलर के 50% सामान पर टैरिफ कम करने के लिए तैयार है। हालांकि, अमेरिका की तरफ से इस प्रस्ताव पर अभी तक कोई फैसला नहीं आया है।
इसकी एक बड़ी वजह अमेरिकी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव्स की एक शिकायत है। उनका मानना है कि भारत ने अपनी आयात नीतियों को इतना सख्त बना दिया है कि अमेरिकी कंपनियों को भारतीय बाजार में अपने उत्पाद बेचने में काफी दिक्कतें आ रही हैं।
दरअसल, भारत सरकार ने 2019 में ब्यूरो ऑफ इंडिया स्टैंडर्ड्स (BIS) के तहत कुछ गुणवत्ता नियंत्रण के नियम लागू किए थे। इनका मकसद भारत में आने वाले सामान की क्वालिटी को बेहतर बनाना था। लेकिन, अमेरिका का कहना है कि भारत के इन कड़े नियमों की वजह से अमेरिकी प्रोडक्ट्स भारतीय बाजार में अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं। खासकर रसायन, चिकित्सा उपकरण, बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य उत्पाद और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में अमेरिका ने चिंता जताई है।
अमेरिका का आरोप है कि भारत ने इन क्षेत्रों के लिए जो क्वालिटी स्टैंडर्ड तय किए हैं, वे बहुत ज्यादा सख्त हैं, और अमेरिकी प्रोडक्ट्स उन पर खरे नहीं उतर पाते। नतीजा यह है कि अमेरिकी कंपनियाँ भारत के बड़े बाजार में अपने प्रोडक्ट्स को लॉन्च करने में मुश्किल महसूस कर रही हैं।
वहीं, भारत का कहना है कि इन गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को भारतीय उद्योगों को सुरक्षा देने और आयातित सामान की उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। फिलहाल, भारत सरकार इन मानकों में किसी भी तरह की ढील देने के मूड में नहीं दिखती। भारत का मानना है कि अगर एक देश के लिए नियमों में छूट दी गई, तो दूसरे देश भी ऐसी ही मांग कर सकते हैं।
अमेरिका की सबसे बड़ी चिंता यही है कि इन सख्त नियमों के चलते उनके उत्पाद भारतीय बाजार में एंट्री नहीं कर पा रहे हैं। वे चाहते हैं कि भारत इन गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को थोड़ा लचीला बनाए ताकि अमेरिकी उत्पादों के लिए भारतीय बाजार के दरवाजे खुल सकें।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या भारत और अमेरिका के बीच इस रेसिप्रोकल टैरिफ के मुद्दे पर कोई सहमति बन पाती है। क्या राष्ट्रपति ट्रंप अपने रुख में कोई बदलाव लाएंगे, या फिर भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में एक नया मोड़ आएगा?
आप क्या सोचते हैं? क्या भारत को अमेरिका को कुछ और ऑफर करके इस मामले को सुलझाना चाहिए? अपनी राय कमेंट करके जरूर बताएं।
SOURCE youtube.com
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