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जातिगत जनगणना: सरकार का मास्टरस्ट्रोक या राजनीति? जानें अंदर की बात

जातिगत जनगणना: सरकार का मास्टरस्ट्रोक या राजनीति? जानें अंदर की बात

जातिगत जनगणना को लेकर केंद्र सरकार के ताज़ा फैसले ने देशभर में राजनीतिक और सामाजिक बहस को तेज़ कर दिया है। सरकारी सूत्रों के हवाले से यह खबर सामने आई है कि दो से तीन महीने के भीतर जातिगत जनगणना का काम शुरू किया जाएगा, तो यह समझना ज़रूरी हो जाता है कि सरकार ने आखिरकार यह कदम क्यों उठाया और इसके पीछे की रणनीति क्या है।

1. महिला आरक्षण कानून

जातिगत जनगणना की घोषणा का सबसे बड़ा कारण 2029 में महिला आरक्षण कानून को लागू करना बताया जा रहा है। सरकार 33% आरक्षण महिलाओं को देना चाहती है, लेकिन इसके लिए जनसंख्या और सामाजिक आंकड़ों की स्पष्टता ज़रूरी है। बिना नई जनगणना और सामाजिक वर्गों की सही जानकारी के, यह आरक्षण नीति प्रभावी ढंग से लागू नहीं की जा सकती।

2. ओबीसी वर्ग की वास्तविक संख्या

भारत में ओबीसी वर्ग को आरक्षण तो दिया गया है, लेकिन उनके लिए कोई जनगणना नहीं हुई है। 1931 की जनगणना आखिरी बार थी जब जातिगत आंकड़े इकट्ठा किए गए थे। ऐसे में आज तक इसी पुराने डेटा के आधार पर नीतियां बनाई जाती हैं, जो अब अप्रासंगिक हो चुका है। सरकार का मानना है कि जब ओबीसी वर्ग की सटीक संख्या सामने आएगी, तो कल्याणकारी योजनाएं और आरक्षण नीति अधिक न्यायसंगत बनाई जा सकेगी।

3. मुस्लिम समुदाय में पिछड़े वर्ग की पहचान

इस बार की जातिगत जनगणना में एक बड़ा बदलाव यह भी होगा कि मुस्लिम समुदाय की जातियों की भी गिनती की जाएगी। विशेष रूप से पसमांदा मुसलमानों – जिन्हें सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाता है – उनकी पहचान और उत्थान की दिशा में यह एक बड़ा कदम माना जा रहा है। सरकार का तर्क है कि बिना आंकड़ों के सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना संभव नहीं है।

4. डीलिमिटेशन और राजनीतिक पुनर्संरचना

जनगणना के बाद डीलिमिटेशन (परिसीमन) की प्रक्रिया शुरू होनी है, जिसमें लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाएं और प्रतिनिधित्व दोबारा तय होंगे। ऐसे में जातिगत आंकड़े यह तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं कि किस क्षेत्र को कितनी नुमाइंदगी मिले। माना जा रहा है कि इससे उत्तर भारत के राज्यों, जहां ओबीसी आबादी अधिक है, को अधिक प्रतिनिधित्व मिल सकता है।

5. डिजिटल जनगणना का निर्णय

सरकार ने इस बार की जनगणना को पूरी तरह डिजिटल करने का निर्णय लिया है। हर अधिकारी के पास स्मार्टफोन और आधार से जुड़ी प्रणाली होगी, जिससे गड़बड़ी की संभावनाएं कम होंगी। पारदर्शिता और डेटा की प्रमाणिकता की दिशा में यह एक आधुनिक प्रयास है।

6. आरक्षण नीति पर पुनर्विचार

जब नए आंकड़े सामने आएंगे और अगर यह पाया गया कि कुछ राज्यों में ओबीसी की आबादी 27% से कहीं अधिक है, तो आरक्षण की वर्तमान सीमा (27%) को बढ़ाने पर भी विचार हो सकता है। यह कदम ईडब्ल्यूएस की तर्ज पर अतिरिक्त कोटा देने की दिशा में उठाया जा सकता है, हालांकि 50% आरक्षण की सीमा पर सरकार ने अभी कोई ठोस संकेत नहीं दिए हैं।

जाति जनगणना से पहले बनवा ले कास्ट सर्टिफिकेट

अगर आपने अभी तक अपना कास्ट सर्टिफिकेट (जाति प्रमाण पत्र) नहीं बनवाया है, तो यह जरूरी काम जल्द से जल्द निपटा लें। सरकार की कई योजनाओं का लाभ लेने के लिए कास्ट सर्टिफिकेट एक अनिवार्य है, खासकर उन लोगों के लिए जो अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आते हैं।

कास्ट सर्टिफिकेट क्यों है जरूरी?

  1. सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए
  2. आरक्षण का लाभ लेने के लिए (शिक्षा, नौकरी आदि में)
  3. छात्रवृत्ति और शैक्षिक सहायता प्राप्त करने के लिए
  4. सरकारी नौकरियों में दस्तावेज सत्यापन के लिए
  5. जातिगत जनगणना में सही आंकड़े देने के लिए

कैसे करें ऑनलाइन आवेदन?

आजकल अधिकतर राज्य सरकारों ने जाति प्रमाण पत्र के लिए ऑनलाइन आवेदन की सुविधा शुरू कर दी है। आप अपने राज्य की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।

ऑनलाइन आवेदन के लिए जरूरी दस्तावेज

कास्ट सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करते समय आपको निम्नलिखित दस्तावेजों की आवश्यकता होगी:

  1. आधार कार्ड (पहचान पत्र के रूप में)
  2. निवास प्रमाण पत्र (स्थानीयता सिद्ध करने के लिए)
  3. परिवार के किसी सदस्य का जाति प्रमाण पत्र (यदि हो)
  4. जन्म प्रमाण पत्र / शैक्षणिक प्रमाण पत्र
  5. पासपोर्ट साइज फोटो
  6. राशन कार्ड / वोटर आईडी (अगर मांगा जाए)

कितना समय लगता है?

सामान्यतः ऑनलाइन आवेदन के बाद 7 से 15 दिन के भीतर आपका जाति प्रमाण पत्र तैयार हो जाता है, जिसे आप आधिकारिक पोर्टल से डाउनलोड कर सकते हैं या निकटतम CSC सेंटर पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

जातिगत जनगणना सिर्फ आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया नहीं है, इसका असर भारत की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी पड़ेगा। इससे न सिर्फ आरक्षण और जन कल्याणकारी योजनाओं को सही तरिके से लागु किया जा सकेगा , बल्कि चुनावी रणनीतियों में भी बदलाव देखने को मिलेगा। यह देखने लायक होगा कि यह जनगणना सरकारी नीतियों और देश की राजनीति की दिशा कैसे तय करती है।

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