सुप्रीम कोर्ट द्वारा परिषदीय शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य करने के आदेश के बाद अब शिक्षक संगठन न्याय की लड़ाई में उतर आए हैं। प्रदेश सरकार की ओर से दाखिल पुनर्विचार याचिका के बाद यूनाइटेड टीचर्स एसोसिएशन (यूटा) ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वहीं, कई अन्य संगठन भी इस दिशा में तैयारी कर रहे हैं।
मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप
यूटा के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राठौर ने बताया कि गुरुवार को दाखिल याचिका में केंद्र सरकार के 2017 के संशोधन अधिनियम को चुनौती दी गई है। संगठन का कहना है कि इस अधिनियम के जरिए पहले से कार्यरत शिक्षकों पर आज की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता थोपी गई, जो मौलिक अधिकारों का हनन और असंवैधानिक है
राठौर ने स्पष्ट किया कि प्रदेश में हजारों ऐसे शिक्षक हैं जो टीईटी के लिए आवेदन करने की पात्रता ही नहीं रखते। इनमें 2001 से पहले इंटर और बीटीसी आधार पर नियुक्त शिक्षक शामिल हैं, जिनकी सेवा अवधि पांच वर्ष से अधिक है। साथ ही, मृतक आश्रित कोटे में अनुकंपा पर नियुक्त अध्यापक भी इस श्रेणी में आते हैं। संगठन का कहना है कि इन शिक्षकों को छूट मिलनी चाहिए।
शिक्षक संगठन करेंगे आंदोलन
यूटा के नेता सतेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि संगठन अदालत के साथ-साथ सड़क पर भी आंदोलन करेगा। जल्द ही आंदोलन की घोषणा की जाएगी। संगठन का दावा है कि प्रदेश के करीब 1.86 लाख शिक्षक इस आदेश से प्रभावित हो रहे हैं। विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की है।
1.86 लाख शिक्षक बिना टीईटी उत्तीर्ण
उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कुल 4,59,490 शिक्षक कार्यरत हैं, जिनमें से 1.86 लाख शिक्षकों ने अब तक टीईटी उत्तीर्ण नहीं किया है। इनमें अधिकतर वे शिक्षक हैं जो 2010 से पहले नियुक्त हुए थे। सुप्रीम कोर्ट के एक सितंबर के आदेश के अनुसार, पांच साल से अधिक सेवा वाले शिक्षकों को दो वर्ष के भीतर टीईटी उत्तीर्ण करना होगा। इतना ही नहीं, पदोन्नति प्रक्रिया में भी टीईटी उत्तीर्ण होना अनिवार्य रहेगा।
हालांकि, प्रदेश सरकार का रुख है कि 2010 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू होने से पहले नियुक्त शिक्षकों की सेवाएं सुरक्षित रखी जाएं, भले ही उन्होंने टीईटी पास न किया हो। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में पुनरीच्चार याचिका दाखिल की थी, जिस पर नवंबर में सुनवाई होनी है।
केंद्र सरकार की चुप्पी पर नाराजगी
विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन की वरिष्ठ उपाध्यक्ष शालिनी मिश्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आरटीई एक्ट और 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना से पहले नियुक्त शिक्षकों पर भी टीईटी की शर्त लागू कर दी है। लेकिन केंद्र सरकार अब तक मौन है, जो गंभीर चिंता का विषय है। वहीं, विधि विशेषज्ञ आमोद श्रीवास्तव का कहना है कि प्रदेश सरकार ने गंभीरता से पहल की है, मगर जब तक केंद्र सरकार हस्तक्षेप नहीं करती, शिक्षकों को राहत मिलना मुश्किल है।
पांच अक्टूबर को दिल्ली में बैठक
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने बताया कि संगठन भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने की तैयारी कर रहा है। इस मुद्दे पर आगे की रणनीति बनाने के लिए पांच अक्टूबर को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में बैठक बुलाई गई है। इसमें झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र के शिक्षक संगठन भी शामिल होंगे। बैठक में आंदोलन की रूपरेखा और दिल्ली कूच की तिथि तय की जा सकती है
दूसरी ओर, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ (तिवारी गुट) ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में रिच्चू याचिका दाखिल कर दी है। इस दौरान संगठन के संरक्षक व एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह, अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वासवरराज गूरिकर और महासचिव कमलाकांत त्रिपाठी भी मौजूद रहे।
झारखंड सरकार का अलग रुख
जहां यूपी सरकार ने शिक्षकों के समर्थन में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है, वहीं झारखंड सरकार ने इससे किनारा कर लिया है। झारखंड सरकार का कहना है कि ज्यादातर मामलों में पुनर्विचार याचिका खारिज हो जाती है, इसलिए शिक्षक टीईटी की तैयारी करें। राज्य सरकार ने भरोसा दिलाया कि साल में दो बार परीक्षा का अवसर उपलब्ध होगा।
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