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सोशल मीडिया बना DUSU चुनाव का रणक्षेत्र, डिजिटल रणनीति बनाकर मैदान में उतरे छात्र संगठन

सोशल मीडिया बना DUSU चुनाव का रणक्षेत्र, डिजिटल रणनीति बनाकर मैदान में उतरे छात्र संगठन

DUSU Chunav 2025 - दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव इस बार अपने पुराने रंग-ढंग से अलग पूरी तरह डिजिटल अवतार में नजर आ रहा है। प्रिंटेड प्रचार सामग्री पर लगी रोक के बाद अब डूसू चुनाव का पूरा मैदान सोशल मीडिया के हवाले हो चुका है।

पोस्टर, बैनर और दीवारों पर चिपकने वाली अपीलों की जगह अब रील, पॉडकास्ट, एआई जनित ग्राफिक्स और वायरल शॉर्ट वीडियो ने ले ली है। उम्मीदवारों से लेकर छात्र संगठनों तक ने जेन-ज़ी पीढ़ी को साधने के लिए सोशल मीडिया को प्रचार का मुख्य हथियार बना लिया है।

दिल्ली विश्वविद्यालय का कैंपस जहां पहले चुनावी पोस्टरों और पर्चियों से अटा रहता था, अब अपेक्षाकृत साफ-सुथरा नजर आ रहा है। मगर यह शांति सिर्फ सतही है। असल चुनावी युद्ध तो अब मोबाइल स्क्रीन पर लड़ा जा रहा है।

छात्र संगठनों ने बाकायदा सोशल मीडिया ‘वार-रूम’ तैयार किए हैं, जहां दिन-रात प्रचार सामग्री का निर्माण और प्रचार हो रहा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की ऑल इंडिया सोशल मीडिया इंचार्ज प्रेरणा भारद्वाज बताती हैं कि संगठन की 11 सदस्यीय टीम सुबह 9 बजे से रात तक लगातार सोशल मीडिया कंटेंट पर काम करती है।

एबीवीपी के घोषणापत्र और पूर्व कार्यों को डिजिटल फार्मेट में बदला जा रहा है—रील्स, पॉडकास्ट, ग्राफिक्स और एआई वीडियो के जरिए। हर दिन 15 से 20 रील्स पोस्ट की जा रही हैं, जिन पर छात्रों का अच्छा रिस्पॉन्स भी मिल रहा है।

इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर प्रभाव बढ़ाने के लिए उम्मीदवारों की क्षेत्रीय पृष्ठभूमि का भी बखूबी इस्तेमाल किया जा रहा है।

हरियाणा के गायक मासूम शर्मा ने एबीवीपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार आर्यन मान के समर्थन में एक प्रचार वीडियो जारी किया है, जबकि क्रिकेटर युजवेंद्र चहल, राहुल तेवतिया और अभिनेता वरुण सूद ने अपने-अपने इंस्टाग्राम स्टोरीज के जरिये समर्थन जताया है।

दूसरी ओर, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) भी पीछे नहीं है। संगठन के सोशल मीडिया चेयरमैन जीशान और राष्ट्रीय समन्वयक शांतनु के मुताबिक, उन्होंने भी 10-15 सदस्यीय टीम तैयार की है जिसमें ग्राफिक डिजाइनर, वीडियो एडिटर और सोशल मीडिया मैनेजर शामिल हैं।

एनएसयूआई हर दिन 30 से 40 रील्स अपलोड कर रहा है। ‘हम बदलेंगे डीयू’ जैसे थीम के साथ कॉलेज व्हाट्सऐप ग्रुप और इंस्टाग्राम पेजों के जरिए छात्रों तक सीधी पहुंच बनाई जा रही है। इतना ही नहीं, सिद्धू मूसेवाला के पिता तक ने एनएसयूआई उम्मीदवारों के समर्थन में वोट की अपील की है।

डिजिटल प्रचार के इस युग में भौतिक प्रदर्शन भी पीछे नहीं छूट रहा। प्रचार काफिलों में इस बार अभूतपूर्व प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। लक्ज़री गाड़ियों की कतारें—मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू, ऑडी, पोर्श, लैंड रोवर से लेकर थार और बेंटले तक—कॉलेज कैंपस की सड़कों पर चल रही हैं।

उम्मीदवारों के साथ बाउंसरों का काफिला भी देखा जा रहा है, हालांकि कॉलेज परिसरों में बाउंसर के प्रवेश पर रोक है। लेकिन ये काफिले इस बात का प्रतीक हैं कि डूसू चुनाव अब सिर्फ छात्रों का चुनाव नहीं रहा, यह एक बड़े स्तर की राजनीतिक महात्वाकांक्षा का मंच बन चुका है।

इसी क्रम में एबीवीपी के उम्मीदवारों ने रविवार को डोर टू डोर प्रचार अभियान चलाया। अध्यक्ष पद के उम्मीदवार आर्यन मान, उपाध्यक्ष गोविंद तंवर, सचिव कुणाल चौधरी और संयुक्त सचिव दीपिका झा ने नॉर्थ से साउथ कैंपस तक स्थित पीजी और हॉस्टलों में जाकर छात्रों से मुलाकात की।

मुखर्जी नगर, कमला नगर, सत्य निकेतन, लक्ष्मी नगर जैसे इलाकों में प्रचार करते हुए वे छात्रों से अपने घोषणापत्र साझा कर समर्थन की अपील करते नजर आए। एबीवीपी दिल्ली के प्रांत मंत्री सार्थक शर्मा ने कहा कि डीयू का हर छात्र विद्यार्थी परिषद का हिस्सा है और उन्हें भरोसा है कि इस बार के डूसू चुनाव में सभी चारों सीटों पर एबीवीपी को विजय मिलेगी।

डूसू चुनाव सिर्फ एक छात्रसंघ चुनाव नहीं है, यह एक ऐसी परंपरा है जिसका इतिहास खुद दिल्ली की राजनीति से गहराई से जुड़ा रहा है। 1954 से शुरू हुए इस चुनाव में शुरुआती दौर में कांग्रेस के दो गुटों—चौधरी ब्रह्म प्रकाश और एचकेएल भगत के—समर्थक छात्र आमने-सामने होते थे।

यह चुनाव दिल्ली की कांग्रेस राजनीति में गुटबाजी का आइना भी बना। 1972 में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के आधिकारिक तौर पर मैदान में उतरने से पहले तक चुनाव उन्हीं गुटों के बीच लड़ा जाता रहा। डूसू से निकले छात्र नेताओं में सुभाष चोपड़ा, हरचरण सिंह जोश और वीरेश प्रताप चौधरी जैसे नाम हैं, जिन्होंने बाद में दिल्ली की राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर अपनी जगह बनाई।

इस बार का डूसू चुनाव न केवल डिजिटल तकनीक और रणनीति का मिश्रण है, बल्कि यह राष्ट्रीय राजनीति की नर्सरी के रूप में एक बार फिर अपने महत्व को दोहरा रहा है।

सोशल मीडिया की ताकत, प्रभावशाली लोगों की भागीदारी , प्रचार के क्रिएटिव तरीके और रणनीतिक योजनाएं—ये सभी संकेत देते हैं कि छात्र राजनीति अब सिर्फ विचारधारा की नहीं, बल्कि संसाधनों, तकनीक और मैनेजमेंट स्किल की भी लड़ाई बन चुकी है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 19 सितंबर को मतपेटियों से क्या संदेश निकलता है।

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